पतंगबाजी में न करें मांझे वाले धागे का इस्तेमाल, परिंदों की चली जाती है जान

मकर सक्रांति नज़दीक है और पतंगबाजी का जुनून फिर चरम पर है. लोग पतंगबाजी का तो खूब मजा़ लेते हैं, लेकिन इस शौक की कीमत बेजुबान परिंदों को चुकानी पड़ती है. जयपुर में पतंगबाजी का जुनून लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है और लोग अपनी छतों से एक- दूसरे की पतंग काटने के चक्कर में कई परिंदों से उनकी जिंदगी छीन लेते हैं. पिछले साल पेंच लड़ाने से पतंगों के साथ हजारों परिंदें भी कटे. इन परिंदों में सबसे ज्यादा तादाद कबूतरों की थी. कबूतरों के अलावा कई दुर्लभ प्रजाति के परिंदें भी पतंगबाजी से लहुलुहान हुए. इनमें हरियल, तोता, मैना, चील और मोर भी शामिल थे. इस साल भी यहीं आलम है. अब तक कई इंसान और सैंकड़ों परिंदे घायल हो चुके हैं. अगर हम थोड़ा सा सजग हो जाए तो हजारों परिंदों और इंसानों को होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है. करना बस इतना है कि सुबह और शाम के वक्त पतंगबाजी न करें और मांझे का इस्तेमाल बंद कर दें.

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