उदयपुर से करीब पचास किलोमीटर दूर मेनार गांव में होली के दूसरे दिन अनूठे अंदाज़ में रंगों का त्यौहार मनाया जाता है. पिछले चार सौ साल से चली आ रही परंपरा के अनुसार आज भी इस गांव में होली बारूद से खेली जाती है. लोग पारंपरिक वेशभूषा में आधी रात को गांव की चौपाल पर जमा होकर पूरी रात बारूद से होली खेलते हैं. बारूद की होली को देखें तो लगता है कि होली की जगह दिवाली मनाई जा रही है. इस दिन सभी ग्रामीण न सिर्फ पटाखे छोड़ते हैं बल्कि बन्दूकों से भी हवाई फायर कर इस दिन को ऐतिहासिक बनाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह के समय मेनारिया ब्रह्माण ने कुशल रणनीति के साथ युद्ध कर मेवाड़ राज्य की रक्षा की थी और इसी दिन की याद में इस त्यौहार को इस अंदाज़ में मनाते हैं. इसके साथ ही होली के दिन खेले जाने वाला पारंपरिक गेर नृत्य भी ग्रामीण खेलते हैं.
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